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भटकती आत्मा भाग - 4

भटकती आत्मा (भाग - 5) 

            कहानी अब तक 
   मनकू जानकी से रात वाली अंग्रेज बाला की बात बहुत सफाई से छुपा जाता है l  
                अब आगे
   वसुधा के आंचल पर रात्रि की काली चादर फैल चुकी थी l जंगल भयानक प्रतीत हो रहा था l स्याह आंचल में ढका वन्य प्रांत का तंग मार्ग भी दृष्टि पथ में नहीं आ रहा था, परंतु चिर परिचित होने के कारण मनकू को रास्ता तय करने में कुछ भी कठिनाई महसूस नहीं हो रही थी l वह शहर से 20 मील दूर स्थित अपने घर की ओर प्रस्थान कर चुका था | भेड़ की ऊन को बेचकर गांव जा रहा था | 15  मील की यात्रा तय कर चुका था | दुर्गम पर्वत का घुमावदार रास्ता यूँ तो अत्यन्त लम्बा था परन्तु पहाड़ी मार्ग का जानकार होने के कारण वह सड़क पर कभी-कभी ही आता था बस अगला मोड़ पार करने के लिये l वह चढ़ाई चढ़ता यह  दुरूह मार्ग पैदल ही तय कर रहा था l
  उसके पैर मार्ग तय करने में व्यस्त थे परंतु मस्तिष्क जानकी की दयनीयता के इर्द गिर्द चक्कर लगा रहा था l अपनी मनपसंद एक साड़ी उसके लिए खरीदा था l जब जानकी को वह साड़ी देगा तब वह क्रोध दिखाएगी, लेने से इंकार करेगी, लेकिन किसी तरह उसको मनाना पड़ेगा l उसे साड़ी लेना ही पड़ेगा l उसका कोई नहीं है, बूढ़ा बाप दोनों समय का खाना जुटाने में ही पिस जाता है, फिर कपड़ा कहां से दे सकेगा l अपनी जीर्ण शीर्ण साड़ी को किसी तरह लपेटे रहती है l मैं उसको बहन मानता हूं, इसलिए मेरा फर्ज उसके तन को ढकना है l अगर मैं नहीं सोचूँगा तब कौन उसका बुरा भला सोचेगा .........l
इन्हीं सब बातों में खोया हुआ पता नहीं कितनी दूर और आगे निकल आया l अचानक घोड़े की टॉप की आवाज उसके कर्ण रंध्रों को फाड़ने लगी l उसने सोचा नेतरहाट में कलेक्टर साहब रहते हैं, शौक से अपना बंगला बनवा कर, गर्मी का आनंद उठाते हैं; तथा शहर में काम करने मोटर कार से जाते हैं | बड़ों का शौक भी बड़ा ही होता है | वे गरीबों की मजबूरी क्या समझें l सांध्य भ्रमण के लिए निकले होंगे और इस समय लौट रहे होंगे l जाएँ अपनी बला से मुझे क्या लेना l घोड़े की टाप अब निकट आ कर और तेज सुनाई पड़ने लगी थी l अचानक घोड़ा उसके बगल से निकल कर आगे बढ़ गया, फिर 10 कदम जाकर रुक गया l उसकी रश्मि खींच ली गई थी l उसके मुख पर टॉर्च की रोशनी पड़ी तो वह घबड़ा गया l अब उसे स्पष्ट दिखाई पड़ा,यह तो वही अंग्रेज युवती थी; जिसको जंगल में उसने बाघ के मुख से बचाया था | एक अज्ञात दर्द सा उसके दिल को कचोट गया, फिर भी मुख से  आवाज न निकली l वह अश्व के समीप पहुंच चुका था, आगे बढ़ने के लिए उसके पैर उठे परंतु मधुर आवाज ने उसे रोक लिया l
   " ओह,स्वीट फ्रेंड टोम हय"|
  "हां मैं ही हूं"| कहता हुआ वह दो कदम आगे बढ़ गया l 
   "सुनो डार्लिंग, टोम अपना नाम नहीं बटाया"|
   "म....म..... म.... मैं... मेरे नाम से तुम्हें क्या लेना"?
" टोम नहीं जानटा डार्लिंग हम टुम्हारा मार्फत कितना सोचटा रहा हय"|
तुम सोचो या रोओ मेरी बला से l मुझे क्या मतलब है तुमसे"|
   "वाउ पोएट्री भी बना लेता है ना टोम"|
   जाओ तुम अपने घर और मुझे भी जाने दो, समझी"|
" नहीं डार्लिंग, टोम अपना नाम बताओ"|
  "मेरा नाम मनकू है, मनकू माझी समझी"| 
"ओह टोमरा नाम टो अमरा मनमाफिक नई हय l अम टोमरा नाम माइकल रखेगा माइकल समझा फ्रेंड"|
  "तुम जो चाहो कहो ,मेरी बला से"|
  गुनगुनाता हुआ मनकू आगे बढ़ गया l तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था, पीछे मुड़कर उसने एक बार देखा और आंखों में चिंगारी फूटने लगी | लड़की अश्व की रश्मि हाथों में पकड़े पीछे पीछे तीव्रता से आ रही थी l निकट पहुंच कर उसने कहा
  "चोर है, टोम चोर है | भोला-भाला बनकर चोरी करटा हय"|
  "क्या मैं चोर हूं, क्या चुराया है तुम्हारा | तुम्हारी जान बचाई और उसके प्रतिकार स्वरूप मुझे चोर की उपाधि मिल रही है | समझा, अंग्रेज ऐसे ही होते हैं, नमक हराम"|
" गुड तुम मेरा जान क्यों बचाया माइकल"|
" इंसानियत की यह पुकार थी इसलिए मैंने ऐसा किया"|
" चोरी करना भी इंसानियत है क्या"|
" बोलो ना मैंने क्या चुराई है तुम्हारी, मैंने आखिर कौन सी वस्तु चुराई है तुम्हारी बताओ तो"|
  "मेरा हर्ट"  - मुस्कुराती हुई लड़की ने कहा | मनकू भी उसकी इस बात पर मुस्कुराने लगा, और बोला वह -  
  "ओह तो तुम्हारे दिल की चोरी हो गई | तुम लापरवाही से रखती होगी अपने दिल को, है ना"| 
नो नो माय डार्लिंग, हम हिफाजत से इसको रखता था | उस दिन पता नहीं कैसे तुम मेरा हार्ट लेकर भाग गया"|
   मनकू का मन मयूर प्रसन्नता से घनघटा को देखकर नृत्य सा करने लगा l उसने अपने धैर्य के बांध को टूटता सा महसूस किया, प्रेम की दरिया में डूब जाने को आतुर हो गया फिर भी उसके संस्कार ने उसे प्रेम पथ पर आगे बढ़ने से रोकना चाहा l उसने कहा - 
  "तुम्हारा दिल अगर भूल से मेरे पास आ गया है तब मैं उसे लौटा देता हूं  | अब तो खुश हो ना"|
  अंग्रेज बाला की हंसी की निर्झरिणी  तमसाछन्न उपत्याका में निःश्रित हो उठी l   उसने कहा -  "यह मामूली चीज नहीं है जो फिर से लौटाया जा सके l आओ यहां पर बैठ कर बात करेगा"|
टेढ़ी मेढ़ी सर्पाकार मार्ग का यह चौड़ा भाग था l एक दो वृक्ष जंगली फूलों को अपनी शाखाओं में सजाए गौरवान्वित होकर पवन के ताल पर घूम रहे थे l रक्त वर्ण के असंख्य पुष्प यत्र तत्र बिखरे पड़े थे l पुष्पों की मादक सुरभि वातावरण में व्याप्त थी l एक चट्टान पर दोनों बैठ गए l मनकू ग्रामीण संस्कार में बंधा होने के कारण अभी भी युवती से कतरा रहा था, लेकिन दिल तो बंधन तोड़ने को आकुल हो रहा था l मनकू ने पूछा -
   "तुम्हारा नाम क्या है"?
  लड़की  -  "अमारा नाम मैगनोलिया है अम कहां रहता है यह तो जानटा ही होगा टोम" |
   "नहीं बिना बतलाए मैं भला कैसे जान सकता हूं"? मनकू ने कहा 
" अम तुम्हारा बस्ती के ऊपर के पहाड़ पर बने बंगले में रहटा हय"|
  "ओह तो तुम कलेक्टर साहब की लाडली इकलौती पुत्री हो"!
" हां"– मैगनोलिया ने कहा |
  मनकू माझी गंभीर हो गया कलेक्टर साहब को वह स्थान बहुत अच्छा लगा था और इसीलिए वहां पर बंगला बनवा कर रहने लगे थे यहीं से वे आवश्यकता होने पर रांची अपने दफ्तर में जाया करते थे l इनका कार्यालय का काम अधिकतर अपने आवाज से ही होता था। पास के शहर में ही उन्होंने अपना क्षेत्रीय कार्यालय भी बनवा रखा था । बस ठंड के समय दो-तीन महीने वे रांची के आवास में रहते थे।कहां मैगनोलिया और कहां मनकू आकाश और पाताल का अंतर है l 
"सुनो टोम दिल का भाषा जान टा हय"?
मैगनोलिया ने उसकी गंभीरता तोड़ना चाहा l
" नहीं मैं ना तो तुम्हारी भाषा जानता हूं न ही तुम्हारे दिल की भाषा"|
" अच्छा बहुत भोला-भाला है टोम l सुनो हम अपना दिल टुमको दे दिया l अब ले नई सकटा हय l आई लव यू क्या टोम नई चाहटा अमको"?
  म...म.... म.... मैं ....मैं भी बहुत चाहने लगा हूं तुमको | लेकिन तुम अंग्रेज कलक्टर की बेटी हो और मैं गांव का मूर्ख काला आदमी, इसलिए चाहने से क्या होता है; क्या हम लोग कभी मिल सकते हैं" ? 
  "क्यों नहीं अम अपने पापा को बोलेगा अमारा पापा बहुट अच्छा है मानेगा क्यों नहीं, समझा | और भाषा तो अम भी टोमारा नई जानटा हय l लव में भाषा का क्या काम | लेकिन अम सीखेगा टुमारा भाषा"|
  "अच्छा मैगनोलिया अब चलो"|
  " हां हां चलटा हय अम टुमको अक्सर जंगल में मिलेगा l टोम आयेगा ना वहां"|
  "हां जरूर आएंगे"| 
  "तुमको घोड़ा पर चढ़ने आता है"|
  "हाँ आता तो है"|
  " टब टोम घोड़ा हांकेगा और हम पीछे बैठेगा, ठीक हय ना"|
   "अच्छा चलो" कहता हुआ मनकू अश्व के ऊपर बैठ गया, और रश्मि अपने हाथों में ले लिया | पीछे से मैगनोलिया भी बैठ चुकी थी | सुनसान अंधेरे रास्ते में घोड़ा आगे बढ़ता जा रहा था | कभी-कभी घुमावदार रास्ते पर मैगनोलिया मनकू को अपने अंक में भर लेती थी l मनकू को अच्छा ही लग रहा था, इसलिए लज्जित सा होता हुआ भी मनकू शांत बैठा रहा l कुछ देर के बाद बंगला समीप आ गया, मनकू घोड़े पर से नीचे उतरा l मैगनोलिया ने हाथ हिलाकर विदाई दी, मनकू ने भी धीरे से गुड बाय कहा l मैगनोलिया घोड़े पर बैठी हुई बोली - " टोम हमको गाली डेता हय"?
दोनों ठठा कर हंस पड़े | उनकी हंसी वायुमंडल को चीरकर जंगल में व्याप्त हो गई मनकू तृषित नेत्रों से मैगनोलिया को देखता हुआ आगे बढ़ा l वह अपने बंगले के गेट पर जा चुकी थी l
                                            क्रमशः
  
                  निर्मला कर्ण

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1 Comments

Alka jain

26-Jul-2023 10:23 AM

Nice 👍🏼

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